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ब्रेन(Brain) ट्यूमर क्या है? लक्षण, कारण, जांच और इलाज
आईए समझते हैं थोड़ी आसान भाषा में
दिमाग हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। जब इस दिमाग में कोई गांठ (ट्यूमर) बन जाती है, तो इसे ब्रेन ट्यूमर कहते हैं। यह ट्यूमर कैंसरस (मैलिग्नेंट) या गैर-कैंसरस (बिनाइन) दोनों प्रकार का हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर को लेकर लोगों के मन में बहुत भ्रम और डर होता है। आज हम जानेंगे डॉ. अचल शर्मा (वरिष्ठ न्यूरोसर्जन, सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर) से कि ब्रेन ट्यूमर क्या होता है, इसके क्या लक्षण होते हैं, इसका निदान और इलाज कैसे किया जाता है।
ब्रेन ट्यूमर क्या होता है?
ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क या उसकी झिल्लियों में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि के कारण बनने वाली गांठ होती है। यह दो प्रकार के हो सकते हैं:
- बिनाइन ट्यूमर (Benign Tumor) – यह गैर-कैंसरस होते हैं। इनका विकास धीमा होता है और इन्हें सर्जरी से पूरी तरह निकाला जा सकता है। एक बार निकलने के बाद यह दोबारा नहीं बनते।
- मैलिग्नेंट ट्यूमर (Malignant Tumor) – ये कैंसरस होते हैं, तेजी से बढ़ते हैं और आसपास के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन्हें नियंत्रित करने के लिए ऑपरेशन, रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी की जरूरत पड़ती है।
ब्रेन ट्यूमर के प्रकार
ब्रेन ट्यूमर को उनके बनने के स्थान यानी स्रोत के आधार पर दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला होता है प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर, जो सीधे हमारे दिमाग की कोशिकाओं से ही बनता है। यानी यह ट्यूमर मस्तिष्क के अंदर ही शुरू होता है। इसमें कुछ आम प्रकार के ट्यूमर होते हैं जैसे – मेनिंजियोमा, जो मस्तिष्क को ढकने वाली झिल्ली से बनता है; ग्लियोमा, जो दिमाग की तंत्रिका ऊतकों (न्यूरल टिशू) से उत्पन्न होता है; मेडुलोब्लास्टोमा, जो बच्चों में ज़्यादा देखा जाता है और मस्तिष्क के पिछले हिस्से में होता है; और पिट्यूटरी एडेनोमा, जो हार्मोन बनाने वाली पिट्यूटरी ग्रंथि में बनता है। दूसरा प्रकार होता है सेकेंडरी या मेटास्टेटिक ब्रेन ट्यूमर। यह ट्यूमर दिमाग में किसी और अंग से फैलकर आता है, जैसे फेफड़े, स्तन, आंत या शरीर के किसी अन्य हिस्से में पहले से मौजूद कैंसर ब्रेन तक पहुंचकर वहां भी ट्यूमर बना देता है। यह आमतौर पर गंभीर होते हैं और कैंसर के फैलने का संकेत होते हैं।
ब्रेन ट्यूमर किस उम्र में होता है?
ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकते हैं, लेकिन बच्चों और वयस्कों में इसके होने की संभावना अलग-अलग होती है। बच्चों में यह आमतौर पर 5 साल से कम उम्र में होता है, और सबसे सामान्य प्रकार मेडुलोब्लास्टोमा है, जो अक्सर 10 साल की उम्र से पहले विकसित होता है। 0 से 14 वर्ष के बच्चों में यह सबसे आम ठोस कैंसर है। वयस्कों में, विशेषकर 40 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों में ब्रेन ट्यूमर अधिक सामान्य होते हैं, और इनमें से ग्लियोब्लास्टोमा सबसे गंभीर प्रकार है। 85 वर्ष से अधिक आयु वालों में प्राथमिक मस्तिष्क ट्यूमर की घटना सबसे अधिक देखी जाती है।

कैसे पता चलेगा कि सिरदर्द ब्रेन ट्यूमर है?
ब्रेन ट्यूमर के लक्षण उसकी स्थिति, आकार और वृद्धि दर पर निर्भर करते हैं। सिर में हल्का दर्द या धड़कन जैसा महसूस हो सकता है, जो धीरे-धीरे शुरू होकर रुक-रुक कर होता है। यह दर्द कुछ घंटों में खत्म हो जाता है, लेकिन समय के साथ यह बदतर भी हो सकता है। यदि यह लक्षण लगातार बने रहें या बढ़ें, तो डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक है। सही समय पर जांच और उपचार से स्थिति में सुधार संभव है।
ब्रेन ट्यूमर के क्या लक्षण हैं?
ब्रेन ट्यूमर के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि ट्यूमर दिमाग के किस हिस्से में है, उसका आकार कितना है और वह कितनी तेजी से बढ़ रहा है। हर मरीज में लक्षण अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ आम लक्षणों को समझना जरूरी है। सबसे पहले, सिर दर्द एक बहुत आम लक्षण होता है। यह सिर दर्द लगातार बना रहता है, खासकर सुबह के समय ज़्यादा महसूस होता है और कभी-कभी दवाओं से भी ठीक नहीं होता। इसके साथ ही उल्टी आना भी एक संकेत हो सकता है, खासकर जब यह बिना मितली के हो और सिर दर्द के साथ-साथ आए।
दृष्टि में बदलाव भी ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है। जैसे कि धुंधला दिखना, एक साथ दो चीजें दिखाई देना (जिसे डिप्लोपिया कहा जाता है), या अचानक से नजर कमजोर हो जाना। इसी तरह, कुछ लोगों को सुनाई देने में दिक्कत होती है, जैसे कि एक कान से सुनाई देना बंद हो जाना या कान में लगातार घंटी जैसी आवाजें आना (जिसे टिनिटस कहा जाता है)।
ट्यूमर के कारण दिमाग के उन हिस्सों पर असर पड़ सकता है जो शरीर का संतुलन बनाए रखते हैं, जिससे चलने में लड़खड़ाहट या एक तरफ शरीर में कमजोरी महसूस हो सकती है। कई बार मरीज को हाथ या पैर में सुन्नता भी महसूस होती है, यानी वह हिस्सा जैसे सुन हो गया हो।
एक और गंभीर लक्षण है मिर्गी के दौरे आना। कई बार ऐसे लोग जिन्हें पहले कभी मिर्गी नहीं हुई हो, उन्हें अचानक से दौरे आने लगते हैं, जो ब्रेन ट्यूमर की ओर इशारा कर सकते हैं। इसके अलावा, अगर ट्यूमर हार्मोन बनाने वाली ग्रंथि (जैसे पिट्यूटरी) को प्रभावित करता है, तो हार्मोनल बदलाव भी देखे जा सकते हैं। जैसे कि वजन अचानक बढ़ना या घटना, महिलाओं में मासिक धर्म का बंद हो जाना या गर्भधारण में दिक्कत होना।
इन सभी लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। अगर इनमें से कोई भी लक्षण लगातार बने रहें, तो तुरंत डॉक्टर से जांच करवाना जरूरी है।
आदिक जानकारी के लिए इस विडियो को जरुर देखे।
ब्रेन ट्यूमर की जांच कैसे होती है?।
हमें कैसे पता चलेगा कि हमें ट्यूमर है?
1. MRI (Magnetic Resonance Imaging)
यह जांच ब्रेन ट्यूमर की पहचान के लिए सबसे अधिक संवेदनशील और भरोसेमंद मानी जाती है। यह तकनीक मस्तिष्क के अंदरूनी हिस्सों की बेहद स्पष्ट और विस्तृत तस्वीर प्रदान करती है, जिससे डॉक्टर को यह समझने में मदद मिलती है कि ट्यूमर कहां है, उसका आकार कितना है और वह किन हिस्सों को प्रभावित कर रहा है। इस जांच के माध्यम से दिमाग की संरचना और उसमें हो रहे बदलावों को बहुत सटीकता के साथ देखा जा सकता है, जिससे सही इलाज की योजना बनाना आसान हो जाता है।
2. CT स्कैन
यह जांच किसी भी बीमारी को शुरुआती और प्रारंभिक स्तर पर पहचानने के लिए बहुत उपयोगी होती है। जब लक्षण हल्के होते हैं या पूरी तरह स्पष्ट नहीं होते, तब भी यह जांच यह संकेत दे सकती है कि शरीर में कुछ असामान्य हो रहा है। खासकर ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारियों में, अगर समय रहते जांच हो जाए तो इलाज जल्दी शुरू किया जा सकता है और रोगी के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसे शुरुआती पहचान के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है।
3. PET स्कैन
यह जांच ट्यूमर की गतिविधि यानी उसकी एक्टिविटी को समझने के लिए की जाती है। इससे यह पता चलता है कि ट्यूमर कितनी तेजी से बढ़ रहा है, उसमें कितनी सक्रियता है और क्या वह आसपास के ऊतकों को प्रभावित कर रहा है। यह जानकारी डॉक्टर को यह तय करने में मदद करती है कि ट्यूमर कितना खतरनाक है, उसका इलाज कैसे किया जाए और कौन-सी थेरेपी सबसे प्रभावी रहेगी। ट्यूमर की एक्टिविटी जानना इलाज की योजना बनाने में एक महत्वपूर्ण कदम होता है।
4. एंजियोग्राफी
यह जांच मस्तिष्क में खून के प्रवाह यानी ब्लड फ्लो की स्थिति के बारे में जानकारी देती है। इससे यह पता चलता है कि ब्रेन के किन हिस्सों में रक्त संचार सामान्य है और किन हिस्सों में कमी या रुकावट हो रही है। अगर किसी स्थान पर ट्यूमर है, तो वहां का ब्लड फ्लो सामान्य से अलग हो सकता है, जिससे डॉक्टर को उस क्षेत्र की गंभीरता का अंदाजा लगाना आसान हो जाता है। इस तरह की जानकारी से यह तय करना भी आसान हो जाता है कि सर्जरी या अन्य इलाज कितना सुरक्षित और प्रभावी रहेगा।
5. फंडस एग्जामिनेशन (नेत्र जांच)
जब ब्रेन में कोई ट्यूमर होता है या किसी कारण से वहां दबाव बढ़ता है, तो उसका असर आंखों की नसों पर भी पड़ता है। आंखों की नसों पर पड़ा यह दबाव अक्सर इस बात का संकेत होता है कि मस्तिष्क के अंदर प्रेशर बढ़ रहा है। डॉक्टर आंखों की जांच के दौरान यह देख सकते हैं कि नसों पर सूजन या दबाव है या नहीं। यह एक महत्वपूर्ण संकेत होता है जो ब्रेन में किसी गंभीर समस्या, जैसे ट्यूमर या सूजन, की ओर इशारा कर सकता है। इसलिए आंखों की नसों की स्थिति देखकर ब्रेन प्रेशर का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ब्रेन ट्यूमर का इलाज
ब्रेन ट्यूमर का इलाज ट्यूमर के प्रकार, स्थान और स्टेज पर निर्भर करता है। मुख्य रूप से निम्नलिखित उपचार उपलब्ध हैं:
1. सर्जरी (ऑपरेशन)
अगर ब्रेन ट्यूमर को सर्जरी के ज़रिए निकाला जा सकता है, तो यह इलाज का पहला और सबसे अहम विकल्प माना जाता है। खासतौर पर अगर ट्यूमर बिनाइन यानी गैर-कैंसरयुक्त है, तो उसे पूरी तरह से हटाया जा सकता है और इसके बाद दोबारा होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। लेकिन अगर ट्यूमर मस्तिष्क के बहुत गहरे हिस्से में स्थित हो, जिसे डीप ब्रेन कहते हैं, तो वहां सर्जरी करना थोड़ा जटिल होता है। ऐसे मामलों में ट्यूमर को पूरी तरह हटाना संभव नहीं होता, इसलिए डॉक्टर केवल जितना सुरक्षित रूप से निकाला जा सके उतना हिस्सा ही निकालते हैं। इसके बाद मरीज को आगे की थेरेपी दी जाती है ताकि बचा हुआ ट्यूमर भी नियंत्रित किया जा सके।
2. रेडियोथेरेपी
सर्जरी के बाद जो ट्यूमर शरीर में बच जाता है, उसे नष्ट करने के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें लीनियर एक्सेलेटर, साइबर नाइफ और गामा नाइफ शामिल हैं, जो बहुत सटीक तरीके से रेडिएशन देते हैं। यह तकनीक ट्यूमर को लक्षित करती है और बाकी स्वस्थ मस्तिष्क की कोशिकाओं को सुरक्षित रखती है। इसके कारण इलाज ज्यादा प्रभावी और सुरक्षित बन जाता है। इस तरह से मरीज की सेहत बेहतर बनी रहती है और ट्यूमर पर नियंत्रण रहता है।
3. कीमोथेरेपी
यह तरीका खासतौर पर कैंसरस ट्यूमर के इलाज में बहुत उपयोगी होता है। इसमें दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है जो कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं। इन दवाओं को कीमोथेरेपी कहा जाता है। कीमोथेरेपी से ट्यूमर की वृद्धि धीमी होती है या पूरी तरह रुक जाती है। यह इलाज कैंसर को नियंत्रित करने में मददगार साबित होता है।
4. रिहैबिलिटेशन (पुनर्वास)
ब्रेन ट्यूमर का इलाज सर्जरी के बाद भी जारी रहता है। ऑपरेशन के बाद यदि हाथ-पैर में कमजोरी, बोलने में कठिनाई या अन्य समस्याएं होती हैं, तो इनका सुधार करने के लिए फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी जैसी उपचार विधियों का सहारा लिया जाता है। फिजियोथेरेपी से शरीर की गति और संतुलन में सुधार होता है, जिससे मरीज को चलने-फिरने में मदद मिलती है। स्पीच थेरेपी से बोलने की क्षमता में सुधार होता है, जिससे मरीज को संवाद करने में आसानी होती है। इन उपचारों से मरीज की जीवन गुणवत्ता में सुधार होता है और वह जल्दी स्वस्थ हो सकता है।
ब्रेन ट्यूमर से डरने की जरूरत नहीं
ब्रेन ट्यूमर का नाम सुनते ही अधिकतर लोग घबरा जाते हैं, लेकिन आज के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसके इलाज के बेहतरीन विकल्प मौजूद हैं। सही समय पर जांच और उपचार से मरीज को सामान्य जीवन दिया जा सकता है।
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